Friday 28 September 2018

सबकी बात न माना कर - कुँअर बेचैन



सबकी बात न माना कर

खुद को भी पहचाना कर


दुनिया से लड़ना है तो
अपनी ओर निशाना कर 



या तो मुझसे आकर मिल
या मुझको दीवाना कर 



बारिश में औरों पर भी
अपनी छतरी ताना कर 



बाहर दिल की बात न ला
दिल को भी तहखाना कर 



शहरों में हलचल ही रख
मत इनको वीराना कर

Sunday 9 July 2017

मेरे कुछ सवाल हैं by Zakir Khan

मेरे कुछ
सवाल हैं जो
सिर्फ क़यामत के रोज़
पूछूंगा तुमसे
क्योंकि
उसके पहले तुम्हारी और मेरी
बात हो सके
इस लायक नहीं हो तुम।

मैं जानना चाहता हूँ,
क्या रकीब के साथ भी
चलते हुए शाम को यूं हीे
बेखयाली में
उसके साथ भी हाथ
टकरा जाता है तुम्हारा,
क्या अपनी छोटी ऊँगली से
उसका भी हाथ
थाम लिया करती हो
क्या वैसे ही
जैसे मेरा थामा करती थीं
क्या बता दीं बचपन की
सारी कहानियां तुमने उसको
जैसे मुझको
रात रात भर बैठ कर
सुनाई थी तुमने
क्या तुमने बताया उसको
कि पांच के आगे की
हिंदी की गिनती
आती नहीं तुमको
वो सारी तस्वीरें जो
तुम्हारे पापा के साथ,
तुम्हारे भाई के साथ की थी,
जिनमे तुम
बड़ी प्यारी लगीं,
क्या उसे भी दिखा दी तुमने

ये कुछ सवाल हैं
जो सिर्फ क़यामत के रोज़
पूँछूगा तुमसे
क्योंकि उसके पहले
तुम्हारी और मेरी बात हो सके
इस लायक नहीं हो तुम

मैं पूंछना चाहता हूँ कि
क्या वो भी जब
घर छोड़ने आता है तुमको
तो सीढ़ियों पर
आँखें मीच कर
क्या मेरी ही तरह
उसके भी सामने माथा
आगे कर देती हो तुम वैसे ही,
जैसे मेरे सामने किया करतीं थीं
सर्द रातों में, बंद कमरों में
क्या वो भी मेरी तरह
तुम्हारी नंगी पीठ पर
अपनी उँगलियों से
हर्फ़ दर हर्फ़
खुद का नाम गोदता है,और क्या तुम भी
अक्षर बा अक्षर
पहचानने की कोशिश
करती हो
जैसे मेरे साथ किया करती थीं

मेरे कुछ सवाल हैं
जो सिर्फ क़यामत के रोज़
पूछूगा तुमसे
क्योंकि उसके पहले
तुम्हारी और मेरी बात हो सके
इस लायक नहीं हो तुम।
~Zakir Khan

Tuesday 11 April 2017

मैं शुन्य पर सवार हूँ - BY ZAKIR KHAN

मैं शुन्य पर सवार हूँ - BY ZAKIR KHAN

मैं शुन्य पर सवार हूँ ,
मैं शुन्य पर सवार हूँ ,
बे अदब सा मैं खूमार हूँ,
अब मुश्किलो से क्या डरु,
मैं ख़ुद केहर हज़ार हूँ ,
 मैं शुन्य पर सवार हूँ। 

यह ऊँच नीच से परे ,
मजाल आँख में भरे ,
मैं लड़ पड़ा  हूँ रात से ,
मशाल हाँथ में लिए ,
ना सूर्य मेरे साथ है
तोह क्या नई यह बात हैं 
वह श्याम को है ढल गया 
वह रात से था डर गया  
मैं जुगनुओं  का यार हूँ ,
मैं शुन्य पर सवार हूँ। 

भावनाएँ है मर चुकी ,
संवेदनाएं  हैं ख़त्म हो चुकी,
अब  दर्द  से क्या डरूं ,
यह जिंदगी ही जख्म है ,
मैं रहती मात हूँ ,
मैं बेजान स्याह रात हूँ,
मैं काली का श्रृंगार हूँ
मैं शुन्य पर सवार हूँ। 
मैं शुन्य पर सवार हूँ।

हूँ राम का सा तेज मैं,
लंका पति सा ज्ञान हूँ ,
किसकी करू मैं आराधना ,
सबसे जो मैं महान हूँ ,
ब्रम्हांड  का मैं सार हूँ ,
मैं जल प्रवाह निहार हूँ,
मैं शुन्य पर सवार हूँ। 
मैं शुन्य पर सवार हूँ।  


Monday 19 September 2016

"परिवर्तन - एक नई पहल"


आदरणीय मित्रों नमस्कार,
                                    आप सभी को यह बताते हुए काफी ख़ुशी हो रही है कि जल्द ही हम शिक्षा, स्वास्थ्य एवं शशक्तिकरण के लिए एक गैर सरकारी संगठन (NGO) कि नीव रखने जा रहे हैं जिसका नाम "परिवर्तन - एक नई पहल" होगा | हम आशा करते है कि आप सभी हमारा साथ देंगे | यदि आप हमारी संस्था से जुड़ना चाहते हैं तो आप हमसे सीधे संपर्क कर सकते हैं |
               
                धन्यवाद
                                                                                आपका
                                                                              गौरव सिंह
                                                                            8802286871